शल्य में बाकि 3 कषाय क्यों नहीं लीं ?
माया बहुत लंम्बी चलती है,
और
उसमें कभी क्रोध, कभी मान या लोभ घटित होता रहता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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माया का अर्थ छल कपट या कुटिलता है, लोगों को ठगने के लिए छल कपट आदि किए जाते हैं वही माया है।
शल्य का मतलब पीड़ा देने वाली वस्तु है,यह तीन प्रकार की होती है माया,मिथ्या और निदान।
अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि शल्य में तीन कषाय क्यों नहीं ली गई है क्योंकि माया बहुत लम्बी चलती है। शल्य में कभी क़ोध,कभी मान या लोभ घटित होता रहता है।
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माया का अर्थ छल कपट या कुटिलता है, लोगों को ठगने के लिए छल कपट आदि किए जाते हैं वही माया है।
शल्य का मतलब पीड़ा देने वाली वस्तु है,यह तीन प्रकार की होती है माया,मिथ्या और निदान।
अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि शल्य में तीन कषाय क्यों नहीं ली गई है क्योंकि माया बहुत लम्बी चलती है। शल्य में कभी क़ोध,कभी मान या लोभ घटित होता रहता है।