मुनियों के 28 मूलगुण, आचार्य इनको भी पालते हैं तथा अपने अतिरिक्त गुण भी पालते हैं।
जैसे मुनियों के लिये “तप” मूलगुणों में नहीं आते, उत्तरगुण है जबकि आचार्यों के लिये मूलगुण।
गुरु के गुण शिष्य से अधिक होने ही चाहिये।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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आचार्य का तात्पर्य जो स्वयं साधुओं के योग्य आचरण करते हैं और अन्य साधुओं से यथायोग्य आचरण कराते हैं। साधुओं को शिक्षा दीक्षा एवं उनके दोषों निरावण करते हैं। इसके अतिरिक्त विशिष्ट गुणों से युक्त संघ नायक साधुओं के होते हैं अतः इसी कारण उनको आचार्य कहते हैं।
अतः उपरोक्त कथन जो मुनि श्री सुधासागर ने बताया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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आचार्य का तात्पर्य जो स्वयं साधुओं के योग्य आचरण करते हैं और अन्य साधुओं से यथायोग्य आचरण कराते हैं। साधुओं को शिक्षा दीक्षा एवं उनके दोषों निरावण करते हैं। इसके अतिरिक्त विशिष्ट गुणों से युक्त संघ नायक साधुओं के होते हैं अतः इसी कारण उनको आचार्य कहते हैं।
अतः उपरोक्त कथन जो मुनि श्री सुधासागर ने बताया गया है वह पूर्ण सत्य है।