संसारी, पुद्गलों पर आधारित जैसे शरीर, श्वासोच्छवास, इसलिये मूर्तिक; “पर” से बाधित, सो व्यवहार।
सिद्ध भगवान में यह सब नहीं, सो निश्चय।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि मूर्तिक या अमूर्तिक दोनों संसारी पुदग्लों पर आधारित जैसे शरीर,श्व़यासोच्छवास, इसलिए यह मूर्तिक हैं, पर से बाधित व्यवहार में। सिद्ध भगवान् यह सब नहीं इसलिए निश्चय हैं। जीवन में निश्चय एवं व्यवहार धर्म को अपनाना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि मूर्तिक या अमूर्तिक दोनों संसारी पुदग्लों पर आधारित जैसे शरीर,श्व़यासोच्छवास, इसलिए यह मूर्तिक हैं, पर से बाधित व्यवहार में। सिद्ध भगवान् यह सब नहीं इसलिए निश्चय हैं। जीवन में निश्चय एवं व्यवहार धर्म को अपनाना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।