भगवान… स्व-चतुष्टय से बनते हैं ।
मूर्ति… पर-चतुष्टय से (द्रव्य का उपादान, दातार के भाव, क्षेत्र, सूर्य मंत्र देने वाले मुनि की साधना) जो बाहर से स्थापित की जाती है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उक्त कथन सत्य है कि मूर्ति को भगवान बनाने के लिए मूर्ति पर-चतुष्टय से यानी द़व्य का उपादान,दातार के भाव,क्षेत्र, और सूर्य मंत्र देने वाले मुनि की साधना,जो बाहर से स्थापित की जाती है। मूर्ति से भगवान् बनाने के लिए पंचकल्याणक महोत्सव कराना आवश्यक है।
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उक्त कथन सत्य है कि मूर्ति को भगवान बनाने के लिए मूर्ति पर-चतुष्टय से यानी द़व्य का उपादान,दातार के भाव,क्षेत्र, और सूर्य मंत्र देने वाले मुनि की साधना,जो बाहर से स्थापित की जाती है। मूर्ति से भगवान् बनाने के लिए पंचकल्याणक महोत्सव कराना आवश्यक है।