पंडित जी – मूलाचार की मूल पांडुलिपि जर्मनी में है, कितना बड़ा दुर्भाग्य है !
आचार्य श्री – जर्मनी में द्रव्यलिपि हो सकती है, पर यहाँ तो भावलिपि साक्षात् विराजमान है।
(मंच पर विराजित मुनियों को दिखाते हुये) चिंता की बात नहीं है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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4 Responses
मूलाचार एक ग़न्थ है, जिसमें मुनियों को उसी आधार पर चलना पड़ता है, जिससे मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि ग़न्थ कही भी हो, लेकिन आचार्य या मुनि को देखने पर साक्षात मूलाचार दिखाई देता है।
1) ‘पांडुलिपि’ ka kya meaning hai, please ?
2) ‘मूलाचार की मूल पांडुलिपि’ जर्मनी में kaise है ?
3) Yeh to Acharya shri ki vinay ki parakashtha hai ki unhone apne aap ko ‘भावलिपि’ ka representative nahi bataya !
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मूलाचार एक ग़न्थ है, जिसमें मुनियों को उसी आधार पर चलना पड़ता है, जिससे मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि ग़न्थ कही भी हो, लेकिन आचार्य या मुनि को देखने पर साक्षात मूलाचार दिखाई देता है।
1) ‘पांडुलिपि’ ka kya meaning hai, please ?
2) ‘मूलाचार की मूल पांडुलिपि’ जर्मनी में kaise है ?
3) Yeh to Acharya shri ki vinay ki parakashtha hai ki unhone apne aap ko ‘भावलिपि’ ka representative nahi bataya !
1) हाथ से लिखी original copy.
2) हमारे लोगों को इनकी वकत नहीं है। विदेशी study करने आते हैं, साथ में ग्रंथ भी ले जाते हैं।
Okay.