मोहनीय / सुख
मोहनीय तो 10वें गुणस्थान के अंत में समाप्त हो जाता है तो अनंत सुख 11, 12, गुणस्थान में क्यों नहीं ?
क्योंकि ज्ञान पर आवरण 12वें गुणस्थान के अंत तक चलता है ।
श्री प्रवचनसार में 3 अधिकार ही हैं – ज्ञेय, चारित्र और ज्ञान अधिकार (सुख अधिकार नहीं दिया, ज्ञान और सुख का जोड़ा है) ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
6 Responses
मोहनीय कर्म- – जिसके उदय में जीव हित-अहित के विवेक से रहित होता है,यह दो प्रकार के होते हैं, दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय।इन दोनों के उदय में जीव मिथ्यादृष्टी और राग द्वेषी कहलाता है। गुणस्थान- – मोह और योग के माध्यम से जीव के परिणामों से होने वाले उतार चढ़ाव को कहते हैं। जीवों के परिणाम अनन्त है,परन्तु उन सभी को चोदह श्रेणीयों में विभाजित किया गया है। सुख- – सुख अल्हाद रुप होता है, वह दो प्रकार का है,इन्द़िय सुख और अतीन्द्रिय सुख जबकि आत्म स्वरुप के अनुभव से उत्पन्न और रागादि विकल्पों से रहित निराकुलता रुप अतीन्द्रिय सुख है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि अनन्त सुख 11,12 वें गुणस्थान में क्यों नहीं क्योंकि ज्ञान पर आवरण 12वे गुणस्थान के अन्त तक चलता है। अतः श्री प़वचरन सार का कथन सत्य है।
“ज्ञेय” Adhikaar ka kya taatparya hai?
ज्ञेय यानि जानने योग्य ।
इस अधिकार में 6द्रव्य/ 9पदार्थों आदि का उल्लेख है ।
“ज्ञान” Adhikaar mein phir kya included hai?
शुद्ध परिणाम, शुभोपयोग आदि ।
Okay.