दो मित्र नित्य नदी पर जाकर डुबकी लगाते थे ।
Deal थी कि सिक्के पहले मित्र को मिलेंगे और सूरज (जिसका प्रतिबिम्ब नदी में दिखता था) दूसरे को ।
थोड़े दिनों में पहला तो धनवान हो गया और दूसरा पागल ।
क्या हम भी छाया रूपी खुशी के पीछे तो अपना जीवन बर्बाद नहीं कर रहे हैं !
चिंतन
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यह कथन बिलकुल सत्य है। आजकल इन्सान यथार्थ का जीवन नहीं जीरहे हैं बल्कि अपनी छाया को सत्य रुप मानकर ही जीवन जीरहे हैं। लोग अपनी सूरत शीशे में देखते हैं तो साफ दिखाई नहीं देती है क्योंकि वह गन्दा रहता है तब उसको साफ करना पड़ता है। इसी प्रकार जीवन को सुन्दर बनाने के लिए अपने अन्दर पवित्रता लाना चाहिए।
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यह कथन बिलकुल सत्य है। आजकल इन्सान यथार्थ का जीवन नहीं जीरहे हैं बल्कि अपनी छाया को सत्य रुप मानकर ही जीवन जीरहे हैं। लोग अपनी सूरत शीशे में देखते हैं तो साफ दिखाई नहीं देती है क्योंकि वह गन्दा रहता है तब उसको साफ करना पड़ता है। इसी प्रकार जीवन को सुन्दर बनाने के लिए अपने अन्दर पवित्रता लाना चाहिए।