रागद्वेष
राजा के शत्रु का कहना मानने वाला राजा का हितकारी कैसे हो सकता है !
रागद्वेष, मिथ्यात्व (झूठी धारणा) को मानने वाला अपनी आत्मा/अपना हितकारी कैसे हो सकता है !!
श्री समयसार जी – पेज 31
राजा के शत्रु का कहना मानने वाला राजा का हितकारी कैसे हो सकता है !
रागद्वेष, मिथ्यात्व (झूठी धारणा) को मानने वाला अपनी आत्मा/अपना हितकारी कैसे हो सकता है !!
श्री समयसार जी – पेज 31
One Response
रागद्वेष, मिथ्यात्व रखने वालो का अपनी आत्मा का कभी हितकारी नहीं हो सकता है क्योकि आत्मा में इन विकारो के चढे रहने के कारण आत्मा को पवित्र नही बना सकते हैं।
इसी प्रकार राजा के शत्रु का कहना मानने वाला कभी भी राजा का हितकारी नहीं हो सकता है।अतः आत्मा का हितकारी वही हो सकता है जो रागद्वेष और मोह आदि का त्याग करने का प़यास करता है।