रागद्वेष कषाय जन्य है,
मोह मिथ्यात्व से उत्पन्न/प्रेरित होने वाली चीज़ है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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राग का मतलब इष्ट पदार्थों में प़ीति या हर्ष रुप परिणाम होना होता है जबकि द्वेष में अप़ीति या बैर भाव होना होता है, इसमें क़ोधभाव आदि रहते हैं। मोह का मतलब जिस कर्म के उदय से जीव हित, अहित के विवेक से रहित होता है। अतः मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि राग-द्वेष कषाय जन्य है, जबकि मोह मिथ्यात्व से उत्पन्न या प्रेरित होने वाली चीज़ है। अतः जीवन में राग-द्वेष और मोह से बचना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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राग का मतलब इष्ट पदार्थों में प़ीति या हर्ष रुप परिणाम होना होता है जबकि द्वेष में अप़ीति या बैर भाव होना होता है, इसमें क़ोधभाव आदि रहते हैं।
मोह का मतलब जिस कर्म के उदय से जीव हित, अहित के विवेक से रहित होता है। अतः मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि राग-द्वेष कषाय जन्य है, जबकि मोह मिथ्यात्व से उत्पन्न या प्रेरित होने वाली चीज़ है। अतः जीवन में राग-द्वेष और मोह से बचना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।