रावण

1) रावण बनना भी कहाँ आसान !
रावण में अहंकार था तो पश्चाताप भी था,
रावण में वासना थी तो संयम भी था,
रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी
तो बिना सहमति परायी स्त्री को स्पर्श न करने का संकल्प भी था,
सीता जीवित मिली ये राम की ताकत थी,
पर पवित्र मिली ये रावण की मर्यादा थी ।

हे राम !
तुम्हारे युग का रावण अच्छा था..
दस के दस चेहरे, सब “बाहर” रखता था..

महसूस किया है कभी उस जलते हुए रावण का दुःख ?
जो सामने खड़ी भीड़ से बार बार पूछ रहा था…..
“तुम में से कोई राम है क्या ??

(पारुल-देहली)

आज तो रावण पर तीर चलाने वाले सब नकली राम हैं (रामलीला के) ।

2)हर रावण को जलाने से पहले हम ही तो उसे बनाते हैं/उसे ख़ुद खड़ा करते हैं।

(डॉ.एस.एम.जैन)

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2 Responses

  1. यह कथन, बिलकुल सत्य है ।
    आजकल, रावण ज़्यादातर लोगों में, बस गया है;
    रावण के पुतले जलाने से, कोई भला नहीं होगा ।इसके लिए अपने अंदर जो रावण बसा हुआ है, उसे मारना होगा और उस के लिए, अपने अंदर राम को बिठाना होगा; तभी आपका कल्याण होगा ।

  2. Very true. Before burning effigies of “Raavan”, we should introspect on his goodness and our evils; then probably we will not do so and work on improving ourselves.

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