गोमटेश स्तुति के आखिर में लिखा – “विद्यासागर कब बनूँ…”
ये नाम तो गुरु ने दिया था पर विद्या का सागर/ अथाह-ज्ञानी बनने का लक्ष्य है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
ऐसे ही आचार्य समंतभद्र स्वामी ने महावीर स्तुति में भगवान को समंतभद्रम् कहा।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जीवन में लक्ष्य को निर्धारित करना चाहिए ताकि जीवन में पुरुषार्थ करके मंजिल प्राप्त की जा सकती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी अपने लक्ष्य पर बढ़ रहे हैं,उधर किसी प्रकार की शिथिलता नहीं हो रही है। अतः मोक्ष मार्ग का लक्ष्य बनाकर चल कर पुरुषार्थ करने पर लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है।
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जीवन में लक्ष्य को निर्धारित करना चाहिए ताकि जीवन में पुरुषार्थ करके मंजिल प्राप्त की जा सकती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी अपने लक्ष्य पर बढ़ रहे हैं,उधर किसी प्रकार की शिथिलता नहीं हो रही है। अतः मोक्ष मार्ग का लक्ष्य बनाकर चल कर पुरुषार्थ करने पर लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है।