बाह्य लिंग मात्र होने से धर्म की प्राप्ति नहीं, पर बिना बाह्य लिंग के भी धर्म की प्राप्ति नहीं होती है ।
श्री अष्टपाहुड़ – गाथा – 31
जैसे श्वेत वस्त्र धारण करने मात्र से ब्रम्हचर्य नहीं, पर अंतरंग में धर्म होगा तो वस्त्र सादा हो ही जायेंगें ।
डॉ. पुलक गोयल
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लिंग का अर्थ चिन्ह होता है। जैनागम में लिंग तीन माने गये हैं, मुनि, आर्यिका और उत्कृष्ट श्रावक। इन तीनों लिंग द़व्य भाव के भेद दो प्रकार के होते हैं। शरीर का ब़ाह्य भेद द़व्य लिंग है तथा अंतरंग में वीतरागता रुप भाव लिंग होता है। इसके अलावा धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र पर श्रद्वान होना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि ब़ाह्म लिंग मात्र होने से धर्म की प्राप्ति नहीं,पर ब़ाह्य लिंग के बिना धर्म की प्राप्ति भी नहीं होती है। जैसे श्र्वेत वस्त्र धारण करने मात्र से ब़ह्मचर्य नहीं बल्कि अंतरंग में धर्म होगा तो वस्त्र भी सादा हो जायेंगे।
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लिंग का अर्थ चिन्ह होता है। जैनागम में लिंग तीन माने गये हैं, मुनि, आर्यिका और उत्कृष्ट श्रावक। इन तीनों लिंग द़व्य भाव के भेद दो प्रकार के होते हैं। शरीर का ब़ाह्य भेद द़व्य लिंग है तथा अंतरंग में वीतरागता रुप भाव लिंग होता है। इसके अलावा धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र पर श्रद्वान होना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि ब़ाह्म लिंग मात्र होने से धर्म की प्राप्ति नहीं,पर ब़ाह्य लिंग के बिना धर्म की प्राप्ति भी नहीं होती है। जैसे श्र्वेत वस्त्र धारण करने मात्र से ब़ह्मचर्य नहीं बल्कि अंतरंग में धर्म होगा तो वस्त्र भी सादा हो जायेंगे।