गये थे श्यामलाल की शादि में पर रामलाल के बैंड़ अच्छे बज रहे थे सो वहाँ नाचने लगे ।
मुनि श्री पुलकसागर जी
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पूज्य पुरुषों का आदर करना विनय है अथवा रत्नत्रय धारण करने वाले पुरुषों के प्रति नम़ता धारण करना विनय है। मिथ्यादृष्टि—मिथ्यात्व कर्म के उदय से वशीकृत जीव मिथ्याद्वष्टि कहलाता है एवं दोष युक्त देव के हिंसा युक्त धर्म को, गुरु को मानता है और उनका आदर सत्कार करना मिथ्यात्व होता है। अतः जो उदाहरण दिया गया है वह मिथ्यात्व विनय होती है।
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पूज्य पुरुषों का आदर करना विनय है अथवा रत्नत्रय धारण करने वाले पुरुषों के प्रति नम़ता धारण करना विनय है। मिथ्यादृष्टि—मिथ्यात्व कर्म के उदय से वशीकृत जीव मिथ्याद्वष्टि कहलाता है एवं दोष युक्त देव के हिंसा युक्त धर्म को, गुरु को मानता है और उनका आदर सत्कार करना मिथ्यात्व होता है। अतः जो उदाहरण दिया गया है वह मिथ्यात्व विनय होती है।