वीतरागता – एक शब्द ही हमारा धर्म है,
सच्चे देव, गुरु, शास्त्र की पहचान है/उनका मापदंड़ है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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यह कथन बिलकुल सत्य है कि वीतरागता ही जैनधर्म का मूल मंत्र है।वीतरागता का सही मापदंड़ है कि जिनको सच्चे देव, गुरु और शास्त्र पर श्रद्वान करना होता है। आत्मसाधना के द्वारा जिन्होने राग, द्वेष को नष्ट कर दिया है उसी को वीतरागता कहते है।
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यह कथन बिलकुल सत्य है कि वीतरागता ही जैनधर्म का मूल मंत्र है।वीतरागता का सही मापदंड़ है कि जिनको सच्चे देव, गुरु और शास्त्र पर श्रद्वान करना होता है। आत्मसाधना के द्वारा जिन्होने राग, द्वेष को नष्ट कर दिया है उसी को वीतरागता कहते है।