नहीं,
वैराग्य कभी राग की क्रियायों को देखकर नहीं होता है ।
उन्हें तो नीलांजना के शरीर की नश्वरता देखकर वैराग्य हुआ था ।
आचार्य श्री सन्मतिसागर जी
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वैराग्य का तात्पर्य रागादि विकल्पों रहित होकर आत्मा में लीन होना हैै। इससे मोक्ष मार्ग प़शत होता है।इस रास्ते पर चलने के लिए मुनि बनना आवश्यक है। अतः उक्त कथन सत्य है कि श्री आदिनाथ भगवान को नृत्य देखकर वैराग्य हुआ था।श्री आदिनाथ भगवान ने जीवन की नश्वर को समझा था, अतः इसी कारण वैराग्य का मार्ग प्रशस्त किया गया था।
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वैराग्य का तात्पर्य रागादि विकल्पों रहित होकर आत्मा में लीन होना हैै। इससे मोक्ष मार्ग प़शत होता है।इस रास्ते पर चलने के लिए मुनि बनना आवश्यक है। अतः उक्त कथन सत्य है कि श्री आदिनाथ भगवान को नृत्य देखकर वैराग्य हुआ था।श्री आदिनाथ भगवान ने जीवन की नश्वर को समझा था, अतः इसी कारण वैराग्य का मार्ग प्रशस्त किया गया था।