वैराग्य
शमशान जाने पर वैराग्य भाव प्राय: सभी के आते हैं,
पर टिकते इसलिये नहीं क्योंकि वैराग्य का भाव-रूपी-बीज हम बंजर भूमि(धर्म-रूपी-आद्रता का अभाव) में डालते हैं ।
मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
शमशान जाने पर वैराग्य भाव प्राय: सभी के आते हैं,
पर टिकते इसलिये नहीं क्योंकि वैराग्य का भाव-रूपी-बीज हम बंजर भूमि(धर्म-रूपी-आद्रता का अभाव) में डालते हैं ।
मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
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वैराग्य के लिए वीतरागता अपनाना आवश्यक है जिसमें आत्मसाधना के द्धारा राग द्वेष नष्ट हो जाते हैं।शमशान में जाने से वैराग्य के भाव तो उत्पन्न होते हैं लेकिन जब तक धर्म रुपी बीज को नहीं डालेंगे तब तक वैराग्य के भाव नहीं हो सकते हैं।अतः धर्म से जुडने का प़यास करना चाहिए तभी वैराग्य के भाव आ सकते हैं।