द्रव्य संग्रह जी में कहा है… “पुद्गल के सुख दुःख है”, यह व्यवहार से कहा है/ “पर” वस्तु से सुख दुःख की अपेक्षा से कहा है।
व्यवहार “पर” के आश्रित ग्रहण करता है इसलिये संसार का कारण है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/20)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने व्यवहार को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
1) “पर” में जो इंवॉल्व होगा सुख दुःख उसी को तो होगा। खुद में रहने वाला अपने में रहेगा, आनंद में रहेगा।
2) संसार में जितना भी व्यवहार है “पर” की अपेक्षा सहित होता है। “पर” से जब हट जाएंगे, स्वयं में आ जाएंगे तो व्यवहार नहीं होगा तब निश्चय में चले जाएंगे।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने व्यवहार को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
Following 2 lines ka meaning clarify karenge, please :
1) ‘“पर” वस्तु से सुख दुःख की अपेक्षा से कहा है।’
2) ”व्यवहार “पर” के आश्रित ग्रहण करता है इसलिये संसार का कारण है।’
1) “पर” में जो इंवॉल्व होगा सुख दुःख उसी को तो होगा। खुद में रहने वाला अपने में रहेगा, आनंद में रहेगा।
2) संसार में जितना भी व्यवहार है “पर” की अपेक्षा सहित होता है। “पर” से जब हट जाएंगे, स्वयं में आ जाएंगे तो व्यवहार नहीं होगा तब निश्चय में चले जाएंगे।