शरीर के योग्य परमाणुओं का संचय आयु (शरीर) के अनुसार होता है।
औदारिक, वैक्रियिक व आहारक शरीरों में (गुण-हानि) हर अंतर्मुहूर्त के बाद द्रव्य आधा-आधा हो जाता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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6 Responses
मुनि महाराज जी ने शरीर नामकर्म का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!
1) ‘गुण-हानि’ ka yahi meaning hai kya ki ‘हर अंतर्मुहूर्त के बाद द्रव्य आधा-आधा हो जाता है’ ?
2) Yeh ‘Taijas’ aur ‘Karmaan’ shareeron ke liye applicable nahi hai, kya ?
1) द्रव्य का हर अंतरमुर्हूर्त पर आधा होना, गुण-हानि।
2) तैजस/ कार्मण में (1) नहीं लगेगा क्योंकि तीन शरीरों की वर्गणायें तो उसी/ एक जन्म में ही उपयोग करके समाप्त हो जातीं हैं जबकि तैजस/ कार्मण की अगले जन्मों में चलती रहती हैं।
6 Responses
मुनि महाराज जी ने शरीर नामकर्म का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!
1) ‘गुण-हानि’ ka yahi meaning hai kya ki ‘हर अंतर्मुहूर्त के बाद द्रव्य आधा-आधा हो जाता है’ ?
2) Yeh ‘Taijas’ aur ‘Karmaan’ shareeron ke liye applicable nahi hai, kya ?
1) द्रव्य का हर अंतरमुर्हूर्त पर आधा होना, गुण-हानि।
2) तैजस/ कार्मण में (1) नहीं लगेगा क्योंकि तीन शरीरों की वर्गणायें तो उसी/ एक जन्म में ही उपयोग करके समाप्त हो जातीं हैं जबकि तैजस/ कार्मण की अगले जन्मों में चलती रहती हैं।
‘तैजस/ कार्मण’ bhi kya ‘शरीर नामकर्म’ ke under aata
hai ?
९३ प्रकृतियाँ नामकर्म की हैं; उसमें से ५ शरीर नामकर्म की हैं, जिसमें ‘तैजस’ और ‘कार्मण’ भी आता है।
Okay.