शुक्लध्यान
क्षपक श्रेणी की अपेक्षा –
पहला शुक्लध्यान – दसवें गुणस्थान तक होता है,
———————-इसमें मोहनीय कर्म का नाश दसवें गुणस्थान के अंत में हो जाता है ।
दूसरा शुक्लध्यान -बारहवें गुणस्थान में,
———————-इसमें तीनों घातिया कर्मों का नाश हो जाता है ।
ये दौनों शुक्लध्यान लगातार, बिना अंतराल के, एक के बाद एक होते हैं, अन्यथा यदि अंतराल हुआ तो उस समय ध्यानरहित अवस्था हो जायेगी ।
पं. रतनलाल बैनाडा जी