शुद्धता
सबसे ज्यादा प्रभावकारी/ शुद्धता, ध्यानरूपी अग्नि लाती है। जहाँ दवा/ योग प्रभावकारी नहीं, वहाँ ध्यान कार्यकारी होता है। यदि शुक्ल-ध्यान में 100°C ताप की अग्नि काम करती है तो धर्म-ध्यान से 10-20°C ताप तो बढ़ेगा ही, इससे रोगादि के जीवाणु कम/ समाप्त होंगे न !!
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-गाथा- 200)
7 Responses
मुनि महाराज जी ने शुद्धता के लिए जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन में हर स्थित में शुद्धता का ध्यान रखना परम आवश्यक है, ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
‘यदि ध्यान में 100°C ताप की अग्नि काम करती है ..’; Yahan par kaunse ‘ध्यान’ ki baat ho rahi hai ?
100॰C वाला शुक्लध्यान,
10-20॰c वाला धर्मध्यान।
Okay.
‘शुक्लध्यान’ ko post me specify karne ki zaroorat hai ?
Added.
It is now clear to me.