शुभोपयोग संयम के साथ तो शुद्धोपयोग में कारण,
असंयम के साथ सम्यग्दर्शन में कारण ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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शुभोपयोग-= दया, दान, पूजा,व़़त,शील आदि रुप शुभ राग और चित्त प़साद रुप परिणाम होना है।
शुद्वोपयोग-= रागदि विकल्पों से रहित आत्मा की निश्चय दशा ही है। निश्चय रत्नत्रय से युक्त वीतरागी श्रमण शुद्वोपयोगी कहा गया है। सम्यग्दर्शन-= सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्वान का नाम है अथवा जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहे गए सात तत्त्वों के यथार्थ श्रद्वान को सम्यग्दर्शन कहते हैं।
अतः यह कथन सत्य है कि शुभोपयोग संयम के साथ तो शुद्वोपयोग में कारण और असंयम के साथ सम्यग्दर्शन में कारण होता है।
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शुभोपयोग-= दया, दान, पूजा,व़़त,शील आदि रुप शुभ राग और चित्त प़साद रुप परिणाम होना है।
शुद्वोपयोग-= रागदि विकल्पों से रहित आत्मा की निश्चय दशा ही है। निश्चय रत्नत्रय से युक्त वीतरागी श्रमण शुद्वोपयोगी कहा गया है। सम्यग्दर्शन-= सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्वान का नाम है अथवा जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहे गए सात तत्त्वों के यथार्थ श्रद्वान को सम्यग्दर्शन कहते हैं।
अतः यह कथन सत्य है कि शुभोपयोग संयम के साथ तो शुद्वोपयोग में कारण और असंयम के साथ सम्यग्दर्शन में कारण होता है।