आचार्य श्री ज्ञानसागर जी कहते थे – “जिनके पास परिग्रह-संज्ञा है, उनकी परिक्रमा भय-संज्ञा करती रहती है”
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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संज्ञा- -आहार आदि विषयों की अभिलाषा को कहते हैं,यह चार प्रकार की होती है आहार,भय,मैथुन व परिग़ह संज्ञा। संसारी जीव इन चार संज्ञाओं के कारण अनादि काल से पीड़ित है। परिग़ह- – यह मेरा है, मैं इसका स्वामी हूं, इस प्रकार का ममत्व भाव परिग़ह है। परिग़ह संज्ञा- – धन धान्यादि के अर्जन करने की इच्छा होना होता है।
अतः आचार्य जी का कथन सत्य है कि जिनके पास परिग़ह-संज्ञा है, उनकी परिक्रमा भय-संज्ञा करतीं रहती है।
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संज्ञा- -आहार आदि विषयों की अभिलाषा को कहते हैं,यह चार प्रकार की होती है आहार,भय,मैथुन व परिग़ह संज्ञा। संसारी जीव इन चार संज्ञाओं के कारण अनादि काल से पीड़ित है। परिग़ह- – यह मेरा है, मैं इसका स्वामी हूं, इस प्रकार का ममत्व भाव परिग़ह है। परिग़ह संज्ञा- – धन धान्यादि के अर्जन करने की इच्छा होना होता है।
अतः आचार्य जी का कथन सत्य है कि जिनके पास परिग़ह-संज्ञा है, उनकी परिक्रमा भय-संज्ञा करतीं रहती है।