संतोष
साधु और पापी दोनों में ही संतोष दिखता/होता है।
बस दोनों की मंज़िलें विपरीत दिशा में होतीं हैं।
शकुनि ने अपनी बहन के साथ हुये अन्याय का बदला लेने के लिए कितने लम्बे समय तक संतोष रखा!
बहन/ जीजा को बदला लेने के लिये मना नहीं पाया तो भांजों के बड़े होने का इंंतजार करता रहा।
मुनि श्री सुधासागर जी
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संतोषी वही होता है जो हर पल प्रसन्नता एवं सुखी रहता है।संतोष जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि साधु एवं पापी की मंजिलें अलग-अलग होती हैं, लेकिन साधुओं को हमेशा संतोष रहता है, जबकि पापी हमेशा संतोषी नहीं रह सकता है। अतः जब तक धर्म का अनुयाई नहीं होगा तब तक संतोषी नहीं रह सकता है। अतः जीवन में प्राप्त को ही पर्याप्त समझ लेता है, वही सुखी एवं संतोषी रह सकता है।