संयम या संगति
या तो ख़ुद संयम/नियम ले लो, नहीं ले सकते तो संयमी की संगति कर लो।
लक्ष्मण को क्रोध बहुत आता था, शांत राम की संगति ने उनका नुकसान नहीं होने दिया।
यदि दोनों संभव नहीं हों तो परिवारजन एक-एक दिन के नियम ले लें।
राजा श्रेणिक ख़ुद संयम नहीं ले पाते थे सो संयमी चेलना रानी की संगति से भविष्य के तीर्थंकर बनेंगे।
पूज्य न बन सको, तो पूज्य की पूजा करो।
मुनि श्री सुधासागर जी
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संयम का तात्पर्य व़त या समिति का पालन करना,मन वचन काय के द्वारा अशुभ प़वृत्ति का त्याग करना तथा इन्द़ियों को वश में रखना होता है।संगति का मतलब अच्छे मनुष्य या गुरु के साथ जुड़ना है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि खुद संयम या नियम ले लो, यदि नहीं ले सकते हो तो कम से कम संयमी की संगति लेना चाहिए। जैसे लक्ष्मण को क़ोध आता था लेकिन शांत राम की संगति से कुछ नुकसान नहीं हुआ था। अतः संयम या नियम नहीं ले सकते हों तो कम से कम संयमी की संगति लेना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।