श्रमण, कषाय सल्लेखना तो हर समय करते रहते हैं। अंत में तो व्यवहार सल्लेखना होती है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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महाराज जी का कथन है कि साधुओं द्वारा कषाय संल्लेखना हर समय करते हैं जबकि अंत में तो बस व्यवहार सल्लेखना होती है! अतः जीवन में श्रावकों को भी अपनी-अपनी कपियों को कम करते हुए सल्लेखना अथवा समाधिमरण के भाव रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
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महाराज जी का कथन है कि साधुओं द्वारा कषाय संल्लेखना हर समय करते हैं जबकि अंत में तो बस व्यवहार सल्लेखना होती है! अतः जीवन में श्रावकों को भी अपनी-अपनी कपियों को कम करते हुए सल्लेखना अथवा समाधिमरण के भाव रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!