संसार / परमार्थ

संसार में पुण्य का महत्त्व ज़्यादा है, प्रमादी को भी लाभ होता है,
परमार्थ में प्रमादी की प्रगति नहीं ।

रत्नत्रय – 3

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  1. संसार – संंसरण या आवागमन करने को संसार कहते हैं। कर्म के फलस्वरूप भवान्तर की प्राप्ति होना संसार है ।
    परमार्थ – परम का अर्थ यहाँ मोक्ष है, जिसमें आत्महित ओर लोकहित दोनों निहित है, यही परमार्थ कहलाता है । अतः संसार में प्रमाद का लाभ होता है, जब कि परमार्थ में प्रमाद की कोई आवश्यकता नहीं है ।

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