संसारी/मुक्त जीव
“संसारिण: मुक्ता: च”
– तत्त्वार्थ-सूत्र – 2/10
इस सूत्र में “संसारी” पहले लिया, हालाँकि “मुक्त” ज्यादा महत्त्वपूर्ण है,
कारण –
1. मुक्त संसार से ही होते हैं
2. मुक्त होने के बाद फिर कभी संसारी नहीं बनते
3. बहुविकल्पी को पहले जैसे ज्ञानों के भेदों में
4. जो दिख रहा है, उस पर आस्था आसान, फिर उस पर भी हो जायेगी जो नहीं दिख रहा है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि जीव संसारी रहता है,जब तक मुक्ति नहीं मिलती है, तब तक जीवन में भटकता रहता है। अतः मुक्ति के बाद भटकना नहीं पड़ता है। अतः मुक्ति के लिए धर्म का आश्रय लेना होगा एवं गुरुओं की शरण में जाना आवश्यक है ताकि जीवन की मुक्ति मिल सकती है।