संघर्षण / मंथन
एक जंगल में बांसों के संघर्षण की आवाज़ अग्नि में बदल गई।
गाँव से भी वैसी ही आवाज आ रही थी। यह मथनी की आवाज़ थी। इसमें आग नहीं, नवनीत निकला।
यह संघर्षण नहीं, मंथन था। इसमें एक छोर खींचा जाता, तो दूसरा ढीला छोड़ा जाता था।
मुनि प्रमाणसागर जी
3 Responses
उपरोक्त कथन सत्य है कि जंगलों में बासों का संघर्षण अग्नि में बदल जाता है।यह कथन भी सत्य है कि गांवों में ऐसी आवाज आती है,वह मथनी की आवाज होती है,वह आवाज दही के मंथन से मक्खन मिलता है, इसमें एक छोर खींचा जाता है जबकि दूसरा ढीला छोड़ा जाता है। अतः जीवन में हर बात का मंथन करना चाहिए ताकि जीवन में मक्खन सरीखा फल मिल सकता है,जिससे जीवन में कल्याण हो सकता है।
Maharajshri ne bahut hi sundar shabdon me :
1) “Sangharsh” aur “Manthan” ka difference aur
2) “kheenchne” aur “dheela chodhne” me balance rakhne ke mahatv ko samjha diya.
Namostu Gurudev !!
Very true and meaningful !!!but with us we done mistakes in kab khichna or kab dhil dena
But now we can start doing manthan more
Namostu gurudev