श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार में… सचित्त-त्याग प्रतिमा वाले को “दया की मूर्ति” कहा है।
यानी सचित्त फल-सब्जियों को जीव सहित माना/ खाने पर हिंसा मानी।
महापुराण जी में चित्त को पर से हटाने से (अचित्त) आगे की प्रतिमाओं में ब्रह्म के समीप जा पायेंगे।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने सचित त्याग प़तिमा को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने सचित त्याग प़तिमा को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
Is context me, ‘ब्रह्म’ ka kya meaning hai, please ?
आत्मा (परमात्मा)।
Okay.