सत्यादि योग
सत्य तथा अनुभय, मन व वचन योग; शरीर व पर्याप्ति नाम कर्मोदय से।
असत्य व उभय में भी शरीर व पर्याप्ति नाम कर्मोदय पर मुख्य कारण “आवरण”।
13वें गुणस्थान में “आवरण” हट जाता है सो असत्य व उभय नहीं रहते।
ये चारों योग मिथ्यादृष्टि/ सम्यग्दृष्टि तथा संयमी/ असंयमी सब में पाये जाते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा- 227)
3 Responses
‘असत्य’ aur ‘उभय’ yog kaunse gunasthan tak rehta hai?
12वें गुणस्थान तक।
Okay.