समाधि-मरण के भाव सहित मरण करने वाले, निकट भव में वज्रवृषभनाराच संहनन पाकर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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जैन धर्म में सल्लेखना के भाव लेकर चलना आवश्यक है। यदि सल्लेखना नहीं हो सके तो कम से कम समाधि मरण के भाव होना चाहिए ताकि निकट भव में वज़वृषभनाराच संहनन पाकर मोक्ष प्राप्त करने में समर्थ हो सकते हैं।
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जैन धर्म में सल्लेखना के भाव लेकर चलना आवश्यक है। यदि सल्लेखना नहीं हो सके तो कम से कम समाधि मरण के भाव होना चाहिए ताकि निकट भव में वज़वृषभनाराच संहनन पाकर मोक्ष प्राप्त करने में समर्थ हो सकते हैं।