समानता
जब मेरा अस्तित्व है, तो सामने वाले का नहीं होगा क्या !
दोनों के आत्मप्रदेश असंख्यात-असंख्यात,
जब से मैं, तब से वह;
यह है अस्तित्व-गुणों की स्वीकारता >> “मैं हूँ तो तुम हो” ।
आज तुम नीचे हो, तो कल मैं वहाँ था, आने वाले कल फिर वहाँ हो सकता हूँ जैसे मंडूक, भक्ति में इंद्र से भी आगे और हम कूप-मंडूक ही बने रह गये !
आचार्य श्री विद्यासागर जी
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि प़त्येक जीव की आत्मा होती है, अतः सभी को समानता मानना चाहिए।हर जीव अपने कर्मों के आधार पर नीचे ऊँचा होता रहता है। हर जीव को धर्म से जुड़ने पर अपने कर्मों को काटकर भगवान् भी बन सकता है। अतः किसी जीव को छोटा बड़ा नहीं समझना चाहिए।