आर्यिका श्री विशालमति माताजी – गुरुदेव ! इतने बड़े संघ के नायक होकर भी इतने निस्पृही कैसे ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी – मैं संघ का नायक नहीं, ज्ञायक हूँ (संघ को देखने/जानने वाला) ।
आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
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सम्यग्द्वष्टि उसी की होती है,जिसे सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र पर श्रद्वान होता है।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सही है कि वह संघ का नायक नहीं ज्ञायक यानी संघ को देखने या जानने वाला हूं।
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सम्यग्द्वष्टि उसी की होती है,जिसे सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र पर श्रद्वान होता है।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सही है कि वह संघ का नायक नहीं ज्ञायक यानी संघ को देखने या जानने वाला हूं।