जब सर्वावधिज्ञान एक परमाणु तक को जानता है, तो मन:पर्यय ज्ञानी उसका अनंतवा भाग कैसे जानेगा ?
आशय द्रव्य से नहीं, पर्याय से लेना। पर्याय में अनंत शक्ति-अंश होते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीव काण्ड: गाथा– 444)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने सर्वावधि एवं मनःपर्यय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने सर्वावधि एवं मनःपर्यय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।