किसी के बेहोश होने के बाद उसे अन्न जल का त्याग कराना सल्लेखना नहीं, हिंसा है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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संल्लेखना—जीवन का अंत निकट जानकर समतापूर्वक देह का परित्याग करना कहलाता है, इसका शाब्दिक अर्थ है शरीर और कषाय को क़मशः क्षीण करना भी है,इसको समाधिमरण भी कहते हैं।अतः यह कथन सत्य है कि बेहोश होने पर अन्न जल का त्याग कराना सल्लेखना नही बल्कि हिंसा माना जाता है।
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संल्लेखना—जीवन का अंत निकट जानकर समतापूर्वक देह का परित्याग करना कहलाता है, इसका शाब्दिक अर्थ है शरीर और कषाय को क़मशः क्षीण करना भी है,इसको समाधिमरण भी कहते हैं।अतः यह कथन सत्य है कि बेहोश होने पर अन्न जल का त्याग कराना सल्लेखना नही बल्कि हिंसा माना जाता है।
This explains the importance of “Chetna” and “Vivek”, while taking any “Niyam”.