साधना से प्रभावना होती ही है,
पर प्रभावना के लिये साधना करना उत्कृष्ट साधना नहीं ।
चिंतन
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प़भावना का तात्पर्य ज्ञान, ध्यान तत्पश्चात दया,दान तथा जिन पूजा आदि के द्वारा जिन धर्म की महिमा को प़काशित करना होता है,यह सब रत्नत्रय के प़भाव से ही हो सकता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि साधना से प़भावना होती है, लेकिन प़भावना के लिए साधना करना उत्कृष्ट साधना नहीं होती है।
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प़भावना का तात्पर्य ज्ञान, ध्यान तत्पश्चात दया,दान तथा जिन पूजा आदि के द्वारा जिन धर्म की महिमा को प़काशित करना होता है,यह सब रत्नत्रय के प़भाव से ही हो सकता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि साधना से प़भावना होती है, लेकिन प़भावना के लिए साधना करना उत्कृष्ट साधना नहीं होती है।