साधु, साधुता के अयोग्य आदतों को दूर करने की साधना में लगे हैं,
पर कभी कर्मों की ऐसी गठान आ जाती है, जहाँ साधना का cutter मौथरा हो जाता है/टूट जाता है ।
सारे तीर तो किसी के भी निशाने को बेध नहीं पाते हैं न !
मुनि श्री अविचलसागर जी
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साधु निर्ग़ंथ मुनि को कहते हैं। साधु के लिए अठारह मूल गुणों का पालन करना होता है। रत्नत्रय की आराधना करते हुए संयमित जीवन जीते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि साधु,साधुता के अयोग्य आदतों को दूर करने के लिए साधना में लगे रहते हैं। जब कर्मों की गठान आ जाती है, इसके लिए साधना उनको काटने के लिए करना आवश्यक है।
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साधु निर्ग़ंथ मुनि को कहते हैं। साधु के लिए अठारह मूल गुणों का पालन करना होता है। रत्नत्रय की आराधना करते हुए संयमित जीवन जीते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि साधु,साधुता के अयोग्य आदतों को दूर करने के लिए साधना में लगे रहते हैं। जब कर्मों की गठान आ जाती है, इसके लिए साधना उनको काटने के लिए करना आवश्यक है।