सासादन सम्यग्दर्शन में भाव
सासादन गुणस्थान उपशम सम्यग्दर्शन से गिरते समय होता है।
दर्शन-मोहनीय की विवक्षा से न उदय, न उपशम महत्व का है, ना ही क्षयोपशम काम कर रहा है, इसलिये इसमें पारिणामिक भाव कहा।
दर्शन मोहनीय का यदि उदय लें तो मिथ्यात्व गुणस्थान बन जायेगा, सम्यक्-मिथ्यात्व के उदय से तीसरा गुणस्थान,
सम्यक् प्रकृति के उदय से सम्यग्दर्शन (क्षयोपशम सम्यग्दर्शन)
लेकिन अनंतानुबंधी/ चारित्र मोहनीय के उदय की अपेक्षा औदायिक भाव कहा।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड- गाथा 654)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने सासादन सम्यग्दर्शन में भाव का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। जैन दर्शन में भावों की ही महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। अतः जीवन में अच्छे भावों का ध्यान रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।