सुमिरन

मुँह में मिश्री डालकर…
चाहे घूमें,
चाहे बैठ जायें,
चाहे लेट जायें ।
पर जब तक मुँह में मिश्री है तब तक मुँह मीठा रहेगा ।

इसी प्रकार सुमिरन है ।
जब हम चलते-फिरते, उठते-बैठते, खाते-पीते, यानि हम जिस स्थिति में भी हों,
सुमिरन करते रहेंगे, तो उस मिश्री की तरह नाम का मिठास हमारी आत्मा को आता ही रहेगा ।

(नीलम)

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5 Responses

  1. यह कथन बिलकुल सत्य है …
    आत्मा में गुणों का भंडार है;उसका स्वाद हमेशा मिलता रहेगा, जबकि मिश्री का स्वाद क्षणिक है ।आत्मा का सुमरिन करते रहोगे, तो जीवन सफल होगा ।

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