सेवा / पूजा
दीन/हीन की सेवा के बदले में कुछ पाने की भावना नहीं रहती है,
पर पूजादि के बदले में कुछ पाने की भावना प्राय: रहती है ।
मुनि श्री निर्मोहसागर जी
दीन/हीन की सेवा के बदले में कुछ पाने की भावना नहीं रहती है,
पर पूजादि के बदले में कुछ पाने की भावना प्राय: रहती है ।
मुनि श्री निर्मोहसागर जी
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पूजा का मतलब पंचपरमेष्टि के गुणों का चिन्तवन करना होता है अतः भगवान् न कुछ लेते हैं, न ही देते हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि दीन हीन के सेवा के बदले में कुछ पाने की भावना नहीं रहती है लेकिन पूजादि करने पर कुछ लोग पाने की भावना प़ायः रखते हैं, लेकिन यह उचित नहीं रहता है।
अतः जीवन में पूजादि करते समय मांगने के भाव नहीं रहना चाहिए बल्कि मन में निर्मलता रखनी चाहिए ।