धर्म में तदाकार स्थापना ही होती है ।
तदाकार भी दो प्रकार की—पूज्य और अपूज्य ।
ठौने पर चावल चढ़ाना पूजा का संकल्प है/व्यवहार है – आइये, बैठिये, हृदय में रहिये ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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5 Responses
जैन धर्म में दो तरह की स्थापना होती हैं, पूज्य और अपूज्य। अपूज्य में पूजा के लिए ठोने में चावल या लोंग से करते हैं जिसका मतलब भगवान को अपने हृदय में आत्मसात करना । जहां तक व्यवहार से मतलब… आईये बैठिये कहना, उसके हृदय में प़ेम के रुप में स्थापना होती है।
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जैन धर्म में दो तरह की स्थापना होती हैं, पूज्य और अपूज्य। अपूज्य में पूजा के लिए ठोने में चावल या लोंग से करते हैं जिसका मतलब भगवान को अपने हृदय में आत्मसात करना । जहां तक व्यवहार से मतलब… आईये बैठिये कहना, उसके हृदय में प़ेम के रुप में स्थापना होती है।
What do we mean by “चावक” in the above context aur kya “ठौने” mein “स्थापना”, “apujya” hai?
“चावक” को correct करके “चावल” कर दिया है ।
ठौने के चावल पूजने योग्य नहीं ।
To phir “Apujya” ke kaunse examples hain?
Comment modify किया, ठौने के चावलों को पूज्य नहीं कहते ।