स्वतंत्रता
स्व के तंत्र* में बंधना स्वतंत्रता है।
अगर अपने तंत्र में नहीं बंधेंगे तो स्वछंदता आ जायेगी।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
* नियम/ व्यवस्था/ अनुशासन
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स्वतंत्रता को तारीख से बांधना भी एक अपेक्षा से दासता है।
अनादि से स्वतंत्रता तो हर जीव का स्वयं सिद्ध अधिकार है।
आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी
One Response
मुनि श्री प़माणसागर महाराज जी ने स्वतंत्रता को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में आजादी के बाद नियम, अनुशासन में रहना परम आवश्यक है।