भोजन का लाभ पचाने पर ही,
स्वादिष्ट/गरिष्ठ भोजन में स्वाद तो आयेगा, लाभ/शक्ति नहीं ।
स्वाध्याय के साथ भी ऐसा ही है ।
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One Response
स्वाध्याय का मतलब आत्महित की भावना से सत शास्त्र का वाचन करना,मनन करना और उपदेश आदि देना है । अतः उक्त कथन सत्य है कि भोजन का लाभ पचाने पर ही होता है जबकि स्वादिष्ट एवं गरिष्ठ भोजन में स्वाद तो आवेगा लेकिन उससे लाभ और शक्ति नहीं आती है, यदि स्वाध्याय के साथ ऐसा होता है तो कोई फायदा नहीं हो सकता है। अतः स्वाध्याय विनय पूर्वक होना चाहिए और जितना मनन और चिंतन होगा उतना लाभ मिल सकता है।
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स्वाध्याय का मतलब आत्महित की भावना से सत शास्त्र का वाचन करना,मनन करना और उपदेश आदि देना है । अतः उक्त कथन सत्य है कि भोजन का लाभ पचाने पर ही होता है जबकि स्वादिष्ट एवं गरिष्ठ भोजन में स्वाद तो आवेगा लेकिन उससे लाभ और शक्ति नहीं आती है, यदि स्वाध्याय के साथ ऐसा होता है तो कोई फायदा नहीं हो सकता है। अतः स्वाध्याय विनय पूर्वक होना चाहिए और जितना मनन और चिंतन होगा उतना लाभ मिल सकता है।