स्वाध्याय
मनुष्य के बच्चों की जठराग्नी सबसे कम, इसीलिए प्रकृति ने माँ के दूध को सबसे पतला बनाया है; इस दूध का खोया भी नहीं बन सकता है।
इसीलिए शुरुआत में प्रथमानुयोग पढ़ा जाता है,
फ़िर चरणानुयोग।
पहले करणानुयोग/ द्रव्यानुयोग पढ़ने वाले ऐसे छोटे बच्चे हैं,
जो गाढ़ा दूध पीकर अपना जीवन शुरू करना चाहते हैं ।
आध्यात्म में आनंद तो बहुत आता है पर पूजादि में मन लगना समाप्त हो जाता है ।
इसीलिए आध्यात्म-ग्रंथ मुनियों को पढ़ने को कहा क्योंकि उनको तो पूजादि करना नहीं है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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स्वाधायाय का मतलब जिनवाणी और सभी तरह के ग़न्थों का वाचन और उसको समझना आवश्यक है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि मनुष्यों के बच्चों की जिठराग्नी सबसे कम होती है इसलिए पृकति ने मां का दूध सबसे पतला बनाया है,इस दूध का खोया भी नहीं बन सकता है। इसलिए शुरुआत में प़थमानुयोग पढ़ा जाना आवश्यक है, इसके बाद चरणानुयोग पढना आवश्यक है।जो लोग गाढ़ा दूध पीकर जीवन शुरुआत करना चाहते हैं उन्हें आध्यात्म में बहुत आनन्द आता है,पर पूजा करने में मन लगना समाप्त हो जाता है, इसलिए अध्यात्म ग़न्थ मुनियों का कहा गया है, क्योंकि उनको तो पूजादि करना नहीं है। उक्त कथन मुनि श्री सुधासागर महाराज ने सही कहा है। मुनि श्री सुधासागर महाराज जी को नमोस्तु नमोस्तु।