छूटने की अपेक्षा तो शुद्धोपयोग भी हेय है ।
पर सब हेय छोड़ने योग्य नहीं होते, क्योंकि शुद्धोपयोग केवलज्ञान में कारण है ।
ऐसे ही शुभोपयोग सर्वथा हेय या छोड़ने योग्य नहीं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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हेय- – जो पदार्थ छोड़ने योग्य है वह कहलाता है। उपादेय- – किसी कार्य के होने में जो स्वयं पुरुषार्थ रुप परिणमन करे वह उपादेय होता है।
अतः यह कथन सत्य है कि छूटने की अपेक्षा तो शुद्वोपयोग भी हेय है। पर सब हेय छोड़ने के योग्य नहीं होते हैं, क्योंकि शुद्वोपयोग केवल ज्ञान में कारण है। ऐसे ही शुभोपयोग सर्वथा हेय या छोड़ने योग्य नहीं है।
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हेय- – जो पदार्थ छोड़ने योग्य है वह कहलाता है। उपादेय- – किसी कार्य के होने में जो स्वयं पुरुषार्थ रुप परिणमन करे वह उपादेय होता है।
अतः यह कथन सत्य है कि छूटने की अपेक्षा तो शुद्वोपयोग भी हेय है। पर सब हेय छोड़ने के योग्य नहीं होते हैं, क्योंकि शुद्वोपयोग केवल ज्ञान में कारण है। ऐसे ही शुभोपयोग सर्वथा हेय या छोड़ने योग्य नहीं है।