अनियत
समयसार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की नियत को नहीं स्वीकारता ऐसे ही मुनि, पुण्योदय से माता-पिता मिले छोड़ दिये। हाँ ! Indirect बड़ा फल मिलता है जैसे राजा बनना था, साधु बन गये। पुण्य को त्याग दिया तब अनेकों राजा साधु के चरणों में आ गये।
जो चीज़ कानून की सीमा में आयी, उसका त्याग कर दिया जैसे वीरांगन मुनि करेंगे; द्वीपायन मुनि ने अग्नि व द्वारका का किया था।
मुनि श्री सुधासागर जी
6 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने अनियत बाबत उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! उपरोक्त कथन सत्य है कि जीवन में जो पुण्य मिला है, उसका उपयोग न करते हुए त्याग की भावना होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
Can it’s meaning be elaborated please ?
समयसार शुद्ध को स्वीकारता है इसलिए कालादि प्रभावित नहीं करते।
मुनि भी नियत व कानून को नहीं मानते पुण्योदय को नकार देते हैं।
आखरी मुनि tax मांगने पर संलेखना कर लेंगे।
‘वीरांगन मुनि’ hi ‘last मुनि’ honge, kya ? ‘द्वीपायन मुनि’ ने ‘अग्नि ka tyaag’, kaise kiya tha ?
हाँ, आखिरी मुनि होंगे।
अग्नि का त्याग इसलिए किया था ताकि उनके निमित्त से द्वारका में आग न लग जाए।
Okay.