अरहंत-भक्ति

इससे ही भीतर बैठे होनहार अरहंत-पद की पहचान होती है, अपने आप से नहीं ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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3 Responses

  1. जो वीतरागी,सर्वज्ञ और हितोपदेशी होते हैं वह अर्हंन्त परमेष्ठि कहलाते हैं। यह तीन लोक में पूज्य होते हैं।
    अर्हन्त-भक्ति—अर्हन्त भगवान् के प्रति जो गुणानुराग रुप भक्ति होती है वह कहलाती है, अथवा अर्हंन्त भगवान् के द्वारा कहे गए धर्म के अनुरूप आचरण करना कहलाती है।यह सोलह कारण भावना में एक भावना होती है।
    अतः इससे ही भीतर बैठे अर्हन्त-पद की पहचान होती है, अपने आप से नहीं होती है।

    1. यदि अरहंत के लिए भक्ति उमड़ रही है तो निकट भविष्य में अरहंत बनने की सम्भावना है ।

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