सब द्रव्य साथ-साथ रहकर भी अपने-अपने स्वभाव में रहते हैं। एक दूसरे के स्वभाव को छेड़ते नहीं। इसीलिये कहा कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं करता है।
अस्तित्व के साथ सहकारिता को स्वीकारना अनेकांत है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र 5/18)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अस्तित्व एवं सहकारिता का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अस्तित्व एवं सहकारिता का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।