अहंकार
बादलों से चट्टानों ने शिकायत की… चारों ओर तुम हरियाली कर देते हो, मुझ पर एक घास का तिनका भी नहीं उगाते !
बादल… इसमें ग़लती तुम्हारे अकड़पने की है। पहली बरसात में ही भूमि नरम हो जाती है पर तुम पूरी बरसात में अपने अकड़पने में ही बनी रहती हो।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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अहंकार प़तेक जीव की बहुत बड़ी दुर्बलता है इससे जीवन का कल्याण नहीं हो सकता है। अतः मुनि श्री प़माण सागर महाराज जी ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।