दीक्षा के बाद मुनि श्री प्रणम्यसागर जी संघ में १०-१२ साल रहे, इसी आकिंचन्य भाव से Unnoticed रहे थे।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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8 Responses
आंकिंचन्य का तात्पर्य समस्त परिग़ह का त्याग करके, कुछ भी मेरा नहीं है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आकिंचन्य धर्म का पालन करने पर ही मुनि दीक्षा संभव होती है। अतः मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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आंकिंचन्य का तात्पर्य समस्त परिग़ह का त्याग करके, कुछ भी मेरा नहीं है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आकिंचन्य धर्म का पालन करने पर ही मुनि दीक्षा संभव होती है। अतः मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
‘इसी आकिंचन्य भाव से Unnoticed रहे थे ।’ Is line ko thoda aur explain karenge, please ?
ऐसे व्यक्तित्व/ ज्ञान के धनी को कोई जानता तक नहीं था।
‘आकिंचन्य भाव’ yahan par kaise apply kiya ?
इतना ज्ञानी 10-12 साल unnoticed तभी रह पायेगा जब अपने ज्ञान तथा आप को किंचित मानता होगा।
‘किंचित’ ka kya meaning hai, please ?
किंचित = थोड़ा सा
Okay.